मन-मस्तिष्क को प्रफुल्लित व गर्वित करने वाली घटनाओं संस्मरणों व सुखद अनुभूतियों को साझा करने का प्रयास
रविवार, 5 दिसंबर 2010
दुनिया की तमाम दलीलें भी आदमी को यह विश्वास नहीं दिला सकतीं
तृष्णा इस कदर अन्धा बना देने वाली शक्ति है
कि दुनिया की तमाम दलीलें भी
आदमी को
यह विश्वास नहीं दिला सकतीं कि वह तृष्णावान है
- अज्ञात महापुरूष
इस दुर्जेय तृष्णा पर जो काबू पा लेता है,
उसके शोक इस प्रकार झड़ जाते हैं
जैसे कमल के पत्ते पर से जल के बिन्दू ।
-महात्मा बुद्ध
सोमवार, 28 जून 2010
शनिवार, 12 जून 2010
दाम्पत्य की स्वर्ण जयन्ती पर माता पिता के पूजन अर्चन का अद्भुत नज़ारा दिखा रानीवाड़ा के कीरी परिवार में
बड़े ही हर्ष और गर्व से भरा प्रसंग है कि हमारे श्री मारवाड़ी ब्रह्मक्षत्रिय
समाज के वरिष्ठ एवं सम्मानित महानुभाव रानीवाड़ा निवासी श्रीमान
चुन्नीलाल जी कीरी एवं उनकी धर्म पत्नी सौभाग्यवती श्रीमती अमृती
देवी के सफलतम दाम्पत्य जीवन की स्वर्ण जयन्ती का महोत्सव
अत्यन्त धूमधाम और विराट स्तर पर मनाया गया जिसमे समाज के
अनेक जाने माने वरिष्ठजन समेत हज़ारों लोग अपनी शुभकामनाएं
देने हेतु सम्मिलित हुए ।
संयोग से मैं भी वहां उपस्थित था । जो मैंने देखा, वह अद्भुत था।
रानीवाड़ा के सुप्रसिद्ध हिंगलाज मन्दिर के सभा भवन में उस
दिन तिल रखने को भी जगह नहीं थी। जितने लोग अन्दर थे,
उतने ही बाहर भी..........सर्वश्री विजय ठाकुर, जेठमल छूंछा,
नारायणदास छूंछा जैसे कितने ही लोग यह देख कर अभिभूत
हो गए कि मंच पर श्रीमती अमृती देवी व श्री चुन्नीलाल जी
कीरी को विशेष रूप से बैठा कर उनके पूरे परिवार ने उनकी पूजा
अर्चना की तथा उपहार इत्यादि भेंट कर, अपनी कृतज्ञता अर्पित
करते हुए उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। बेटे बेटी ही नहीं, बहुओं
और दामादों के अलावा पोते पोतियों और नाती नातिनों ने भी
इसमें भाग लिया ।
सूरत से विशेष रूप से आमन्त्रित ब्रह्मक्षत्रिय समाज के सुप्रसिद्ध
कलाकार दी ग्रेट इन्डियन लाफ्टर चैम्पियन अलबेला खत्री ने
अपनी ख़ास शैली में खूब हँसाया और हँसाने के साथ साथ कई
ऐसी बातें भी कीं जिनसे पूरा माहौल भावुक हो गया । आबू रोड से
पधारे जगदीश आचार्य और उनके कलाकारों ने खूब समां बाँधा ।
एक से बढ़ कर एक कलाकारी प्रस्तुत की गयी ।
इस सारे आयोजन में बेंगलोर से आये जगदीश चुन्नीलाल जी
कीरी के मार्ग दर्शन का विशेष महत्त्व था । उनकी प्लानिंग
शानदार रही । कार्यक्रम पश्चात सभी ने बहुत स्वादिष्ट भोजन
का भी आनंद लिया ।
www.brahmkshtriya.com
http://brahmkshtriya.blogspot.com
गुरुवार, 10 जून 2010
डहेली की कुमारी भूमिका काकू ने ९३% अंक प्राप्त करके परिवार व समाज का गौरव बढ़ाया
शाबास भूमिका काकू !
माँ हिंगलाज की कृपा से
ब्रह्मक्षत्रिय समाज की
एक कन्या
सुश्री भूमिका हेमंत कुमार काकू ने
कक्षा 7 में 93% अंक
प्राप्त कर कक्षा में दूसरे स्थान पर रह कर
परिवार एवं समाज
का नाम रौशन किया है ।
श्री मारवाड़ी ब्रह्मक्षत्रिय समाज डहेली विभाग की सुकन्या
कुमारी भूमिका के उज्ज्वल भविष्य के लिए
हार्दिक शुभ कामनाएं ।
बुधवार, 26 मई 2010
ब्रह्मक्षत्रिय समाज, डहेली द्वारा बुज़ुर्गों का सम्मान समारोह
एक तरफ जहां आज-कल बुज़ुर्गों की उपेक्षा करने व उनकी समुचित
सेवा -सुश्रुषा न करने के समाचार आये दिन देखते हैं, वहीँ अनेक
स्थानों पर उनके सम्मान और अभिनन्दन के महोत्सव मन को
राहत भी देते हैं ।
कल यानी 27 मई 2010 को श्री मारवाड़ी ब्रह्मक्षत्रिय समाज,
डहेली अपने स्वर्ण जयन्ती महोत्सव पर समाज के 16 ऐसे बुज़ुर्गों
को सार्वजनिक रूप से अभिनन्दित और सम्मानित कर रहा है
जिन्होंने अपने जीवन के 75 वसन्त पार कर लिए हैं ।
समाज के अध्यक्ष एवं मुख्य संयोजक वरिष्ठ समाजसेवी
श्री मनहर लाल काकू ने बताया कि इस अवसर पर आयोजित
सांस्कृतिक कार्यक्रम में "माँ बाप ने भुलशो नहीं" की प्रस्तुति भी
होगी। समारोह में सक्रिय समाजसेवी श्री खूब चन्द खत्री तथा
मंच संचालक कवि अलबेला खत्री को समाज गौरव सम्मान से
विभूषित किया जायेगा ।
मैं तो जा रहा हूँ कल डहेली .........अपना सम्मान जो करवाना
है........और फिर पूरे आयोजन का सञ्चालन भी करना है
धन्यवाद और बधाई मनहर लाल काकू जी ! ऐसे आयोजन करके
आप हमारी पुरातन परम्पराओं की ध्वजा फहरा रहे हैं
keep it up !
www.albelakhatri.com
रविवार, 23 मई 2010
यह शक्ति नष्ट हुई कि अपनी सारी ज़िन्दगी कौड़ी कीमत की हो जाती है
महज किताबें पढ़ने का चटखारा लगा
कि ख़ुद की सार-असार विचार-शक्ति
कमज़ोर पड़ जाने का डर है;
और एक बार यह शक्ति नष्ट हुई
कि अपनी सारी ज़िन्दगी कौड़ी कीमत की हो जाती है
- स्वामी विवेकानन्द
शनिवार, 22 मई 2010
आभार पाबला जी ! आभार अवधिया जी !
कल जब मैं एक आलेख टाइप कर रहा था तो अचानक ब्लोगर ने
पहले तो लिप्यान्तर करना बन्द कर दिया फिर ख़ुद ही कहीं खो
गया, इस प्रकार वो पोस्ट नहीं हो सकी। सोचा, थोड़ी देर में ठीक हो
जाएगा, लेकिन मैं हतप्रभ रह गया जब कोई भी ब्लॉग मेरे यहाँ नहीं
खुला, ब्लोग्वानी या चिट्ठाजगत के ब्लॉग पढ़ ही नहीं पा रहा था।
जबकि जी के अवधिया ने बताया कि उनके यहाँ तो सब ठीक है। मैंने
बी एस पाबला जी से कहा तो उन्होंने तुरन्त मेरी मदद की और अपनी
तकनीकी क्षमताओं का प्रयोग करके जो हो सकता था, सब कर
दिया ..लगभग दो घंटे तक उन्होंने घर बैठे बैठे मेरे कंप्यूटर की
सफ़ाई की लेकिन जब ब्लोग्गर नहीं खुला तो उन्होंने खुलासा कर
दिया कि ये समस्या मेरे कम्प्यूटर की नहीं, नेट कनेक्शन की है ।
जो भी हो, पाबला जी ने जो तुरन्त सहायता की और मेहनत
की..मैं उसके लिए उनका मन से कृतज्ञ हूँ और साथ ही श्रद्धेय
अवधिया जी ने भी जो निर्देश मुझे दिए थे..उनके लिए भी मैं
उनका हार्दिक आभारी हूँ।
ये दुनिया ऐसे ही चलती है .........
कौन किसका हबीब होता है
कौन किसका रकीब होता है
बन जाता है वैसा ही तआल्लुक
जैसा जिसका नसीब होता है
आभार पाबला जी !
आभार अवधिया जी !
गुरुवार, 20 मई 2010
सब मनुष्य देवता -तुल्य
कवि,
दार्शनिक
और तपस्वी के लिए
सब वस्तुएं पवित्र हैं,
सब घटनाएँ लाभदायक हैं,
सब दिन पवित्र हैं
और सब मनुष्य देवता -तुल्य
-एमर्सन
मंगलवार, 18 मई 2010
माता-पिता से बढ़ कर न कोई अल्लाह न भगवान है
मन्दिर में हो रही आरती , मस्जिद में अज़ान है
गुरुद्वारों में शबद गूंजते , चर्च में प्रे परवान है
जिनालयों में णमोकार, अगियारी ज्योतिमान है
बौद्ध मठों में मंगलगान है ........................
यही हमारा हिन्दुस्तान है ........................
काम अगर बच्चे करते हैं, क्यों नहीं करने देते ?
पेट अगर भरते हैं अपना, क्यों नहीं भरने देते ?
निर्धनता की कीचड़ से क्यों नहीं उभरने देते ?
मेहनत से किस्मत संवरे तो क्यों न संवरने देते ?
मेहनत करने वाला बालक ही बनता बलवान है
पैसा पैसा जोड़ के इक दिन बन सकता धनवान है
मेहनत के दम पर कोरिया है, चाईना है, जापान है
मेहनत करना धर्म समान है,
मेहनत इन्सां की पहचान है
_________________यही हमारा हिदुस्तान है
_______________अपना प्यारा हिन्दुस्तान है
जनम दिया जिन्होंने तुमको, पाला और पढ़ाया
ख़ुद गीले में जागे, पर सूखे में तुम्हें सुलाया
उनके दूध-औ-खून का कर्ज़ा तुमने ख़ूब चुकाया
उन्हीं के घर से निकाल उनको, वृद्धाश्रम भिजवाया
माता-पिता से बढ़ कर न कोई अल्लाह न भगवान है
माता-पिता ही गीता,बाइबल,श्री गुरुग्रंथ, कुरआन है
अपने माता-पिता का जग में जो करता अपमान है
पूत नहीं है,वो शैतान है
उससे मिलना पाप समान है
_______________यही हमारा हिदुस्तान है
______________अपना प्यारा हिन्दुस्तान है
मिट्टी, लकड़ी,गोबर त्यागे, कांक्रीट अपनाया
ऊँचे भवन बनाए, दीवालों पर काँच सजाया
एसी,फ्रिज,गीजर,टीवी,कारों का ढेर लगाया
कार्बन डाई ऑक्साइड का गहरा जाल बिछाया
कर्म किए जैसे हमने, वैसा उनका भुगतान है
शुद्ध पवन के बिना श्वास लेना तो नर्क समान है
वृक्ष है तो ऑक्सीज़न है ऑक्सीज़न हैं तो प्राण है
वृक्ष नहीं तो सब वीरान है
वृक्ष उगाओ वृक्ष महान है
_______________यही हमारा हिदुस्तान है
_____________अपना प्यारा हिन्दुस्तान है
सरस्वती जैसी कई नदियों का हो चुका सफ़ाया
क्षिप्रा,तापी,चम्बल सबकी सिमट रही है काया
गंगा,यमुना,गोदावरी भी सूख रही है भाया
ज़्यादा दिन तक नहीं रहेगा हम पर इनका साया
जल का संकट गहराया, जल का सीमित परिमाण है
जल का सद उपयोग न सीखे,तो हम सब नादान हैं
जल का दुरउपयोग करे, वह काफ़िर है, बेईमान है
जल जीवन है, जल से जान है
जल को बचालो, जल भगवान् है
___________________यही हमारा हिदुस्तान है
_______________अपना प्यारा हिन्दुस्तान है
बाइबिल से झगड़ा करने
गुरुवाणी किस दिन आई ?
किस दिन अगियारी ने
देरासर को आँख दिखाई ?
किस दिन मस्जिद की मीनारें
मन्दिर से टकराई ?
और किस दिन चौपाई ने
आयत के घर आग लगाई ?
________________नानक जीसस महावीर बुद्ध
________________सारे एक समान हैं
________________मैं जिसको कहता हूँ राम
________________वो ही तेरा रहमान है
________________मेरे घर में गीता है और
________________तेरे घर कुरआन है
सब का आदर और सम्मान है
यही हमारा हिन्दुस्तान है .................................
यही हमारा हिन्दुस्तान है
___हाँ हाँ यही हमारा हिन्दुस्तान है
___अपना प्यारा हिन्दुस्तान है
www.hasyakavi.net
सोमवार, 17 मई 2010
और मैं साधना सरगम का कृतज्ञ हो गया ...........
बात तब की है
जब हम करगिल युद्ध जीते थे और मैं
हमारे सूरमा शहीदों के सम्मान में ऑडियो अल्बम
"तेरी जय हो वीर जवान "
का निर्माण कर रहा था ।
मैंने सात गीत लिखे थे जिन्हें अलग-अलग गायकों
के स्वर में पिरो कर अल्बम बनाना था।
चूंकि इसका सारा खर्च मैं ख़ुद कर रहा था और HMV के
द्वारा रिलीज़ होने पर इसकी सारी रौयल्टी भी शहीद परिवार
फंड के लिए ही व्यय होनी थी इसलिए मेरे पास
बजट भी सीमित था और समय भी................
शेखर सेन ,उद्भव ओझा , जसवंत सिंह और अर्णब की रेकॉर्डिंग
हो चुकी थी सिर्फ़ साधना सरगम का एक गीत बाकी था ।
संयोग से उस दिन मुंबई में ऐसा बादल फटा कि पानी-पानी
हो गया ............अब मैं घबराया क्योंकि यदि साधना नहीं आती है
तो स्टूडियो व अन्य लोगों का खर्च बेकार जाएगा और
बड़ी तकलीफ ये कि उसके बाद 20 दिन तक स्टूडियो
मिलेगा भी नहीं ।
चूंकि मैं साधना जी को मानधन भी बहुत कम दे पा रहा था
इसलिए मुझे शंका हुई कि साधना शायद भारी बरसात और
जल जमाव के बहाने डंडी मार देगी,
गाने के लिए नहीं आएगी .........
लेकिन कमाल________कमाल !
साधना तो आ गई ......
कार पानी में फंस गई तो ऑटो रिक्शा किया,
वह भी फंस गया तो कमर के ऊपर तक सड़क पर भरे
पानी में पैदल - पैदल चल कर आई लेकिन आई और
आते ही कहा- सौरी अलबेलाजी मैं थोड़ा लेट हो गई __
मैं हैरान रह गया कि वह पहुँची कैसे ? और महानता
उस महिला कि ये कि लेट होने के लिए भी सौरी बोल रही है ।
मैंने कहा- पूरा भीग चुकी हो, पहले गर्म गर्म चाय पी लो,
साधना ने कहा - नहीं टाइम बिल्कुल नहीं है ...
चाय बाद में पियूंगी पहले आपका काम ..........
साधना ने तिरंगे वाला गाना "हम को तुम पर नाज़ है "
गाया और ऐसा गाया कि सबको भाव विभोर कर दिया ।
विशेषकर गीत के अन्त में जो आलाप लिया उसने तो
पूरी यूनिट को रुला दिया, साधना स्वयं भी सुबक उठी थी ।
बाद में फोन करके बताया कि कल्याणजी भाई
(कल्याणजी आनंदजी) ने भी इस गीत को बहुत पसंद किया ।
तो मित्रो ! यह थी साधना सरगम की सुहृदयता और विनम्रता
जिसके प्रति मैं सदा कृतज्ञ रहूँगा ...क्योंकि वो इतने पानी में
पैदल चल कर सिर्फ़ इसलिए आई थी कि वह जानती थी
मैं कितनी मुश्किलों में उस अल्बम को बना रहा था
यदि किसी कारण अटक गया तो कई दिनों के लिए लटक
जाएगा ....
धन्यवाद ..साधना !
बहुत बहुत धन्यवाद ! हार्दिक आभार व कृतज्ञता
-अलबेला खत्री
साधना सरगम, अर्नब चटर्जी एवं अलबेला खत्री
अलबेला खत्री, अन्नू कपूर एवं कोमोडोर एफ़. दुभाष
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010
उन्हें नि:संशय सुख की प्राप्ति होती है
जो केवल दया से प्रेरित हो कर सेवा करते हैं
उन्हें
नि:संशय सुख की प्राप्ति होती है
- वेद व्यास
सोमवार, 22 फ़रवरी 2010
मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010
साजन शराबी हो तो बोतल के बदले में ....
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010
जान पे खेल गए जो मॉं के दूध का कर्ज़ चुकाने में.....
धन्य-धन्य ये धरती जिस पर ऐसे वीर जवान हुए
मातृ-भूमि की ख़ातिर जो हॅंसते हॅंसते क़ुरबान हुए
जिनकी कोख के बलिदानों पर गर्व करे मॉं भारती
आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती
आओ गाएं हम..
वन्दे मातरम् ...
वन्दे मातरम् ...
वन्दे मातरम् ...
ऑंचल के कुलदीप को जिसने देश का सूरज बना दिया
अपने घर में किया अन्धेरा, मुल्क़ को रौशन बना दिया
जिनके लाल मरे सरहद पर क़ौम की आन बचाने में
जान पे खेल गए जो मॉं के दूध का कर्ज़ चुकाने में
है उन पर बलिहारी, देश की जनता सारी
देश की जनता सारी, है उन पर बलिहारी
जो माताएं इस माटी पर अपने बेटे वारतीं
आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती... आओ गाएं हम...
जिनके दम पर फहर रहा है आज तिरंगा शान से
जिनके दम पर लौट गया है दुश्मन हिन्दोस्तान से
जिनके दम पर गूंजी धरती विजय के गौरव-गान से
जिनके दम पर हमें देखता जग सारा सम्मान से
है उन पर बलिहारी, देश की जनता सारी
देश की जनता सारी, है उन पर बलिहारी
जिनकी सन्तानें दुश्मन को मौत के घाट उतारतीं
आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती ... आओ गाएं हम...
जिन मॉंओं ने दूध के संग-संग राष्ट्र का प्रेम पिलाया
जिन मॉंओं ने लोरी में भी दीपक राग सुनाया
जिन मॉंओं ने निज पुत्रों को सीमा पर भिजवाया
जिन मॉंओं ने अपने लाल को हिन्द का लाल बनाया
है उन पर बलिहारी, देश की जनता सारी
देश की जनता सारी, है उन पर बलिहारी
जिनकी ममता रण-भूमि में सिंहों सा हुंकारती
आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती ... आओ गाएं हम...
वन्दे मातरम् ...
वन्दे मातरम् ...
वन्दे मातरम् ...
सोमवार, 1 फ़रवरी 2010
देश किसी कोठे पे बदन हुआ जाता है
मंगलवार, 19 जनवरी 2010
रविवार, 17 जनवरी 2010
मौत भी न व्यर्थ जाने दी उसी उस्ताद ने ........
जीते जी भी
जिन्होंने अपना सर्वस्व लगा दिया था दाव पर
साम्यवादी सादगी और सामाजिक समभाव पर
मौत भी न व्यर्थ जाने दी उसी उस्ताद ने
धरती माँ का क़र्ज़ चुकता कर दिया औलाद ने
देह अपनी कर गये जो दान
उन्हें मेरी
हार्दिक आदरांजलि
दिवंगत
ज्योति बाबू बसु को
विनम्र श्रद्धांजलि
शुक्रवार, 15 जनवरी 2010
सोमवार, 11 जनवरी 2010
चार टोटके ले कर खड़े हैं ...........
मूर्ख हैं वे जो लम्बी-लम्बी रचनाओं के सृजन में पड़े हैं
हिट तो वे हैं जो मंच पर केवल चार टोटके ले कर खड़े हैं
-बाबा सत्यनारायण मौर्य
रविवार, 10 जनवरी 2010
आओ बचाएं हिन्दी कवि सम्मेलनों की स्वस्थ परम्परा .....
हास्य कवि सम्मेलनों के मंच पर एक हंगामेदार पैरोडीकार के रूप में पिछले
25 वर्षों के दौरान मैंने देश के लगभग सभी नामी ग़िरामी कवियों-
कवयित्रियों के साथ कविता पढऩे का आनन्द और गौरव प्राप्त किया है. साथ
ही साथ यह कटु अनुभव भी प्राप्त किया है कि बड़े और महंगे कवियों के समक्ष
यदि मंच पर कविता सुनाने का अवसर हो, तो नये कवियों को चाहिए कि वे
कुछ भी फालतू सी तुकबन्दियां ही सुनायें. भूलकर भी कभी अपनी अच्छी
कवितायें सुनाकर श्रोताओं की भारी वाहवाही और तालियां लूटने का अपराध
न करें, क्योंकि इससे अनेक जन को तकलीफ़ होती है.
सबसे पहले तकलीफ़ होती है कवि सम्मेलन के आयोजक को जिसने
हज़ारों रुपये दे-देकर उन तथाकथित बड़े कवियों को बुलाया होता है जो कि
मंच पर सैकड़ों रुपयों का काम भी नहीं दिखा पाते. दिखायें भी कैसे? अपनी
सारी ऊर्जा तो वे बेचारे कवि-सम्मेलन से पूर्व ही खर्च कर चुके होते हैं
मदिरा पान में, ताश खेलने में, अन्य कवियों की निन्दा करने में या उपलब्ध
हो तो कवयित्री से आँख मटक्का करने में. सो मंच पर या तो वे ऊंघते रहते हैं
या ज़र्दे वाला पान मसाला चबा-चबाकर उसी गिलास में थूकते रहते हैं
जिसमें उन्होंने कुछ देर पहले पानी पीया होता है. उसी मंच की सफेद झक
चादरों पर तम्बाकू की पीक पोंछते रहते हैं जिस मंच की धूल माथे पर लगा
कर वे चढ़े होते हैं. और भी बहुत से घृणित कार्य वे बख़ूबी करते हैं. सिर्फ़
कविता ही नहीं कर पाते. कवितायें सुनाते भी हैं तो वही वर्षों पुरानी जो
श्रोताओं ने पहले ही कई बार सुनी होती हैं. ऐसे में कोई नया कवि यदि
कविताओं का ताँता बान्ध दे और जनता के मानस पर छा जाए तो
आयोजक हतप्रभ रह जाता है. वह अपना माथा पीट लेता है यह सोचते हुए
कि क्यों बुलाया उन महंगे गोबर गणेशों को. इससे अच्छा तो नये कवियों
को ही बुलाता. माल भी कम खर्च होता और मज़ा भी ज्य़ादा आता. वह
यह सोच कर भी दुःखी होता है कि जो 'महारथी' 10 मिनट भी श्रोताओं के
समक्ष टिके नहीं, उन्हें तो नोटों के बण्डल देने पड़ रहे हैं और जिन बेचारों ने
सारी रात माहौल जमाया उन्हें देने के लिए कुछ बचा ही नहीं.
कवि सम्मेलन के आयोजक को बड़ी तकलीफ़ तो इस बात से होती है कि
वे 'बड़े कवि' कवि-सम्मेलन को पूरा समय भी नहीं देते . सब जानते हैं
कि कवि-सम्मेलन रात्रि 10 बजे आरम्भ होते हैं और भोर तक चलते हैं.
परन्तु 'वे' कवि जो मंच पर पहले ही बहुत विलम्ब से आते हैं, सिर्फ़
12 बजे तक मंच पर रुकते हैं और जब तक श्रोता कवि-सम्मेलन से पूरी
तरह जुड़ें उससे पूर्व ही कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा भी कर देते हैं। (
चूंकि अपना पारिश्रमिक वे एडवांस ही ले चुके होते हैं इसलिए आयोजक
द्वारा रुपये काट लिए जाने का कोई भय तो उन्हें होता नहीं. लिहाज़ा वे
अपनी मन मर्जी चलाते हैं) बेचारे श्रोता जो मीलों दूर से चल कर आते हैं
कविता का आनन्द लेने के लिए, वे प्यासे ही रह जाते हैं. आयोजक उन
कवियों से बहुत अनुनय-विनय करता है, लेकिन 'वे' मंच पर नहीं रुकते.
रुकें भी किस बल से? जब पल्ले में कविता ही न हो. यह ओछी परम्परा
कविता और कवि-सम्मेलन दोनों के लिए घातक है. क्योंकि
लाख-डेढ़ लाख रुपया खर्च करने वाले आयोजक को जब कवियों से
सहयोग और समय नहीं मिलता तो वो भी सोचता है 'भाड़ में जायें कवि
और चूल्हे में जाये कवि-सम्मेलन.'' इससे अच्छा तो अगली बार आर्केस्ट्रा
का प्रोग्राम ही रख लेंगे. सारी रात कलाकार गायेंगे और जनता को भी
रात मज़ा मिलेगा. लिहाज़ा वह कवि-सम्मेलन हमेशा के लिए बन्द हो
जाता है. ज़रा सोचें, यदि ऐसे ही चलता रहा तो क्या एक दिन ऐसा न
आयेगा जब.. कवि-सम्मेलन केवल इतिहास के पन्नों पर पाये जाएंगे।
कविता के नाम पर लाखों रुपये कूटने वाले कवियों को इस बारे में
सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए. साथ ही आयोजकजन को भी थोड़ा
सख्त रहना चाहिए. खैर...
आयोजक से भी अधिक तकलीफ़ होती है उन '50 हज़ार लूंगा'' मार्का
कवियों को जो देखते हैं कि वे तो धरे ही रह गए और कल का कोई लौंडा
पूरा कवि-सम्मेलन लूट ले गया. तब वे क्रोध के मारे दो पैग और लगा
लेते हैं. फलस्वरूप बेचारों का बचा-खुचा होश भी हवा हो जाता है. तब वे
गला ख़राब होने का या लगातार कार्यक्रमों में व्यस्त रहने के कारण
शारीरिक थकान का बहाना बनाते हुए एक-दो 'हिट' रचनाएं सुना कर
तुरन्त अपना स्थान ग्रहण कर लेते हैं, वे सोचते हैं, जल्दी माइक छोड़
देंगे तो प्यासी जनता 'वन्स मोर - वन्स मोर' चिल्लाकर फिर उन्हें
बुलाएगी, लेकिन ऐसा होता नहीं. क्योंकि जनता उन सुने सुनाये
कैसेट्स के बजाय नये स्वरों को सुनना चाहती है. लिहाज़ा उनका यह
दाव भी खाली जाता है तो वे और भड़क उठते हैं. वाटर बॉटल में
बची-खुची सारी मदिरा भी सुडक लेते हैं और आयोजक की छाती पर
जूते समेत चढ़ बैठते हैं कि जब इन लौंडों को बुलाना था तो हमें क्यों
बुलाया? असल में वे तथाकथित ''स्टार पोएट'' अपने साथ मंच पर उन्हीं
कवियों को पसन्द करते हैं जो कि उनके पांव छू कर काव्य-पाठ करें,
''दादा-दादा'' करें, एकाध कविता उन्हें समर्पित करें और माइक पर
ठीक-ठाक जमें ताकि उनका ''स्टार डम'' बना रहे. जो कवि उनके समूचे
आभा-मंडल को ही धो डाले, उसे वे कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं?
अन्ततः सर्वाधिक तकलीफ़ तो स्वयं उस नये कवि को ही झेलनी पड़ती है
जो उस रात माइक पर तो जम जाता है लेकिन मंच से उखड़ जाता है.
क्योंकि मन ही मन कुढ़े हुए ''बड़े'' कवि उसी वक्त गांठ बान्ध लेते हैं
कि ''इसको'' मंच से आऊट करना है. परिणामतः उस कवि को भविष्य में
काव्य-पाठ का अवसर ही नहीं मिलता. क्योंकि ये तथाकथित दिग्गज
कवि जहां कहीं भी कवि-सम्मेलन करने जाते हैं, आयोजक से पहले ही
पूछ लेते हैं कि और कौन-कौन कवि आ रहे हैं? आयोजक की बताई सूची
में यदि 'उस' का नाम हो, तो वे तुरन्त कहते हैं, ''ये तो महाफालतू कवि
है, कवि नहीं है कचरा है कचरा. इसे मत बुलाओ, नहीं तो पूरे प्रोग्राम का
भट्ठा बैठ जाएगा. ये तो सांप्रदायिक कविता पढ़ता है, तुम्हारे शहर में
दंगा करवा देगा. ये तो पैरोडियां सुनाता है, मंच को सस्ता बना देगा.''
आयोजक यदि कहे कि रहने दीजिए भाई साहब, इस बार तो बुला लिया है.
अगली बार नहीं बुलायेंगे. तो ''उन'' का सीधा जवाब होता है. ''ठीक है, आप
उसी से काम चलाइए, हम नहीं आयेंगे.'' चूंकि आयोजक को लोगों से पैसा
इकट्ठा करना होता है और पैसा ''नाम वालों'' के नाम पर ही मिलता है.
सो न चाहते हुए भी आयोजक को उनकी बात माननी पड़ती है. लिहाज़ा
नया कवि, वह ऊर्जावान कवि, वह मंच-जमाऊ कवि कवि-सम्मेलन
की टीम से कट जाता है.
अतः नये कवि यदि अपना ही भला चाहते हों, तो भूलकर भी कभी महंगे
'कवियों' के सामने माइक पर अपना लोहा न मनवायें. हॉं, मंच पर जमने
का, श्रोताओं का मन जीतने का ज्य़ादा ही शौक और सामर्थ्य हो तो
मुझसे सम्पर्क करें. मेरे द्वारा आयोजित कवि-सम्मेलन में आयें और
जितना ज़ोर हो, सारा दिखा दें. मैं उन्हें मान-सम्मान और उचित
पारिश्रमिक दिलाने के लिए वचनबद्ध हूं. इस आलेख के माध्यम से मैं
आमन्त्रित करता हूं तमाम प्रतिभाशाली रचनाकारों को कि हिन्दी कविता
का मंच तुम्हें पुकार रहा है. सहायता के लिए पुकार रहा है. आओ, इसे
ठेकेदारों की कै़द से छुड़ायें, वर्षों पुरानी घिसी-पिटी लफ्फ़ाजी से मुक्त
करायें और नये काव्य की नई गंगा बहायें.
इस पावन आन्दोलन का आरम्भ मैं पहले ही कर चुका हूं. किन्तु मुझे
सख्त ज़रूरत है उन मेधावी रचनाकारों की जो जोड़-तोड़ में नहीं, अपितु
सृजन में कुशलता रखते हों. आने वाला समय हिन्दी, हिन्दी कविता और
हिन्दी कवि सम्मेलनों के लिए उन्नति का मार्ग प्रशस्त करेगा ऐसा
मेरा दृढ़ विश्वास है.
-अलबेला खत्री
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